कोई रोक लो हमें ज़रा यूँ ,
चल पड़े फिर उन नामुराद गलियों में,
अब्ब देखते हैं क्या होता हैं ए दोस्त,
दिल पकडे हैं अपने सीने में पर,
शायद उलझा आये हैं उनकी बालियों में...
अब्ब कौन समझाए इस मासूम को,
हम थो सल्तनत तक लुटा आये हैं,
उनकी झूठी बातों से लिपटी वादियों में ...
चल पड़े फिर उन नामुराद गलियों में,
अब्ब देखते हैं क्या होता हैं ए दोस्त,
दिल पकडे हैं अपने सीने में पर,
शायद उलझा आये हैं उनकी बालियों में...
अब्ब कौन समझाए इस मासूम को,
हम थो सल्तनत तक लुटा आये हैं,
उनकी झूठी बातों से लिपटी वादियों में ...
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