बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

सोमवार, 27 अगस्त 2012

हमारा वक्तव्य...!!!

भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे....
ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता...
चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धुल की परत...एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धुल की 

हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोडा बेवफा जैसा...एक जाल में था फसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं...
हर बार ज़िन्दगी ले जाती वही कहानी दुहराए:
किसी छप्पर में एक बरसात जैसे मौसम में पीते हुवे चाचा की चाय...कुछ दोस्तों के साथ बैठे बिठाये पल...बादल के हिलते हुए पर्दों से मधिम मधिम छनती हुयी रौशनी आँखों को गर्माहट देती...कुछ चर्चाओं में जीवंत होती अनकहे बातें...एक ट्रेन की आवाज कानो में समाती मानो बगल से गुजर रही हो...सादगी हैं मौसम की...जिंदगी का तजुर्बा देखते...कद बढ़ा...मन बढ़ा...पर दिल रह गया सिर्फ एक मुट्ठी भर का...
जाने क्यों??
आखिर क्यूँ??
बेरुखी हैं इस जन्नत में..जिसे कहते लाखो योनियों के बाद मनुष्य बनता जीव...मोह माया के बंधन में फसता मनुष्य...सच्चाई को जाने परखे बिना ही चलता जाता...जाने किस अदालत की तराजू पर अड़े अहमियत किसी से तौलवाते...

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