पलटकर न देखता अपने किसी शेर को,
हर नज्म पुराने अंशु टपका जाता,
पन्ने भी तो भीग जाते उन्ही अब्सारों से,
हर रोज जाने कौन उन्हें फैला जाता....
हर नज्म पुराने अंशु टपका जाता,
पन्ने भी तो भीग जाते उन्ही अब्सारों से,
हर रोज जाने कौन उन्हें फैला जाता....
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