बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

जंग नहीं..!!


हम यूँही बैठे थे तो एक ने पूछा ..
कविवर ये जंग भी हैं कैसा धोखा ..!!

एक तरफ मातम हैं ..
तो दूजा खालिस ही हँसता ..!!
बारुंदों के बाजार में होता..
कोई तो इंसानियत का झोंका ..!!

तुम भी मरते हम भी मरते ..
फिर यह जंग कहे को होता ..!!

चलते गोलों की चक्की में देखो ..
कुछ इधर का पीसता तो कुछ उधर का पीसता ..!!

इन खेतों की किस्मत देखिये कविवर ..
यहाँ खाद की जगह बस खून हैं रिसता ..!!

इन युद्ध को कौन रुकवाये ..
अब प्रेम की फसल कौन उगाये ..!!

सबको हैं जल्दी खुद जीने की ..
राज के साथ सब छनने की ..!!

कौन इहे अब कुछ बतलाये ..
बारोद बोझल हवायों को मुक्त कराये ..!!

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