बहुत हो गयी एक जैसी कविताएं अब फ्लेवर चेंज...कुछ वीर रस हो जाए...कुछ लोग बड़े ताने दे रहे थे की हम ऐसा नहीं लिख सकते...खास उनके लिए थोडासा पार्टी चेंज..!!
कुछ झूठ मूठ की शान लिए ..
चल जा तू अभिमान लिए ..!!
यह भी रण हैं वो भी रण हैं ..
तू रख धनुष पर बाण लिए ..!!
बस करके लहू स्नान जिए ..
आगों-शोलों की जाम पिए ..!!
ये लक्ष्य बड़ा तुझे खीच रहा ..
क्यूँ छोटी बातो का गुमान लिए ..!!
यहाँ धूम केतु भी आता हैं ..
और प्रचंड रूप दिखलाता हैं ..!!
सब पल भर में खो जाता हैं ..
जो यहाँ सदियों में आता हैं ..!!
तू भी ऐसा कुछ कर जाओ ..
इन लहू में आँधी भर लाओ ..!!
जब अलग थलक ही जीना हैं ..
खुद फटना हैं खुद सीना हैं ..!!
तो क्यूँ ना हम ही राज करे ..
खुद के माथे पर ताज धरे ..!!
ये धर्मछेत्र हैं कर्मचेत्र ...
ना हैं किसी का राज छेत्र ...!!
बस खीच ले भीगे लोचन...
भर दे नया टंकार जघन...!!
बस खीच ले भीगे लोचन...
भर दे नया टंकार जघन...!!
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