बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

सोमवार, 7 जनवरी 2013

ललकार...!!!



बहुत हो गयी एक जैसी कविताएं अब फ्लेवर चेंज...कुछ वीर रस हो जाए...कुछ लोग बड़े ताने दे रहे थे की हम ऐसा नहीं लिख सकते...खास उनके लिए थोडासा पार्टी चेंज..!!


कुछ झूठ मूठ की शान लिए ..
चल जा तू अभिमान लिए ..!!
यह भी रण हैं वो भी रण हैं ..
तू रख धनुष पर बाण लिए ..!!

बस करके लहू स्नान जिए ..
आगों-शोलों की जाम पिए ..!!
ये लक्ष्य बड़ा तुझे खीच रहा ..
क्यूँ छोटी बातो का गुमान लिए ..!!

यहाँ धूम केतु भी आता हैं ..
और प्रचंड रूप दिखलाता हैं ..!! 
सब पल भर में खो जाता हैं ..
जो यहाँ सदियों में आता हैं  ..!!

तू भी ऐसा कुछ कर जाओ ..
इन लहू में आँधी भर लाओ ..!!
जब अलग थलक ही जीना हैं ..
खुद फटना हैं खुद सीना हैं ..!!

तो क्यूँ ना हम ही राज करे ..
खुद के माथे पर ताज धरे ..!!

ये धर्मछेत्र हैं कर्मचेत्र ... 
ना हैं किसी का राज छेत्र ...!!
बस खीच ले भीगे लोचन...
भर दे नया टंकार जघन...!! 

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