बड़ी सादगी रहती किसी के लेटर की आजकल तो दूरभाष यन्त्र आ चूका हैं वरना लोग दिनों दिनों इन्तेजार में गुजारते की उनकी बेसब्री का आखिर क्या अंजाम होगा...शायद आप कुछ हम तक पहुछे थोडा पढ़िए फिर समझिये...आखिर हम सुना रहे एक लिफाफे की दास्ताँ..!!!बड़ी शालीनता से चला आया..
यादों का लिफाफा...!!!
बैठा एक मठमैले थैले में छुपके ..
कहीं नजर न लगे..!!!
तभी लभेड़े मुहर की काजल
चेहरे पर पहचानो...!!!
कितने जुड़वे हैं उनके नाम
लिपटे हैं सीने से...!!!
लाखो सैयारे फॉगता लगता..
आया हैं मेरे पास ...!!!
अब गले मिल ले जल्दी देख...
मुझसे रहा न जाता..!!!
काफी बेढंगा लग रहा तू आज..
भूल गया लिपटना भी...!!!
उफ़ तू तो बेजान हैं हमें लगा..
लिफाफे भी बोलते...!!!
पर पढना पड़ता चश्मा लगा के
वरना बहक जाते..!!!
हर वो दरीचे जहा से आवाज आती..
पकड़ो तो सही...!!!
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