चल रहे हैं मानो कुछ जानी पहचानी पुरानी गलियारे में जहा हर आवाज इतनी जानी पहचानी लगती...कुछ फूल दिए थे उसने निशानी की तौर पर लिए चल रहा हूँ उन्हें...ताकि दिख कर उन्हें अपनी पहचान बता सकू...!!!
चल रहे पुरानी बस्तियों में...!!
ठण्ड से पाव सिकोड़ते टटोल रहे...
पोटली में गर्मी के अश्क...!!
कैद कर रखा था हमने जिन्हें..
एक जमाने में लोगो से बचा के...!!
दो चार झुराए गुल पड़े हैं...
उनकी निशानी खातिर अब यहाँ...!!
उसे कुछ तो ओढा दे तुर्रंत...
वरना जम जाएंगे ठण्ड में...!!
नजला हो गया इन्हें देख...
कैसे सुडुक रहे ओस की गुच्छी...!!
छींकते ही बिखर जाएंगे अरमान..
फिर बटोरते रहना जिंदगी भर..!!
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