आज बसंत था...लोग उसको अपने कंधे पर बिठाए घूम रहे थे पर...किसी ने नहीं देखा उन सूखे पत्तो को...जीवन की आखिरी बात जो रहे थे...आज मन नहीं हो रहा था लिखने का...या सच कहूँ तो कुछ सूझ नहीं रहा था...तभी मैं गुजर रहा था और सुना कराह रहे उन पत्तो की चुर्र चुर्र...!!!
बिछा हूँ जमीन पर...
लोग चढ़े जा रहे...!!!
कराह से मेरी व्याकुल..
पक्षी भागे जा रहे...!!!
कौन उठाये मुझे...
इतनी फुर्सत हैं किसे...!!!
हड्डियाँ तोड़ के...
मुझे कोने जला रहे...!!!
सुबह नए बच्चे लिए...
पेड़ खिल खिलाएंगे...!!!
पर उनको भी तो इश्वर...
वही दिन दिखलाएँगे...!!!
बहुत ही अच्छे प्रतीक का प्रयोग किया सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद....:)
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