बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

कशिश...!!!

सूनी जिदगी बोझल होती....परछाई खोने का भी डर रहता...जाने और कितने डर रहते जेहन में कैद...कितनो को बतलाये...एक आकृति सजाने की कोशिश की हैं पकड़ लिए सूचित करियेगा...उसमे रंगों को भरवाना हैं...सूख गयी हैं उसे मुद्रक की स्याही...हमारे लिए तो अब केवल श्वेत श्याम तस्वीरे ही बनाता वो...कौन भरवाए उसकी "कार्ट्रिज में इंक"....!!!
एक एकांत सी जगह खोज रहा था मैं...
शायद सुनसान सा कब्र खोद रहा था मैं...!!!

कहने को काफी दलीले थी मन में..
चेहरे पर चादर ओढ़कर सो रहा था मैं...!!!

किसी कौतुहल से डरे हुए जीवन के...
ना जाने किसके पुराने बाँट जो रहा था मैं...!!!

किसी प्लेटफोर्म चीरकर धडधडाती रेल जैसे...
कितनो की जीवन में हल्ला बोल रहा था मैं...!!!

एक छत थी टपकती हुयी आशियाने में...
उससे अपनी दामन भीगो रहा था मैं...!!!

धुन भी थी मदमस्त हवाओं की आज...
फिर भी पंख उतार कर सो रहा था मैं...!!!

कितने काफिले आये गए यहाँ कौन बताये...
किसके पैरोंकी खनक को मसोश रहा था मैं...!!!

2 टिप्‍पणियां:

  1. "एक छत थी टपकती हुयी आशियाने में
    उसे अपनी दामन को भीगो रहा था मैं"....बहुत खूब शेर हैं

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    1. शिखा दीदी आपका आभार की आपने अपने वक़्त की साख से कुछ फूल यहाँ भी महकाए...!!

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