सूनी जिदगी बोझल होती....परछाई खोने का भी डर रहता...जाने और कितने डर रहते जेहन में कैद...कितनो को बतलाये...एक आकृति सजाने की कोशिश की हैं पकड़ लिए सूचित करियेगा...उसमे रंगों को भरवाना हैं...सूख गयी हैं उसे मुद्रक की स्याही...हमारे लिए तो अब केवल श्वेत श्याम तस्वीरे ही बनाता वो...कौन भरवाए उसकी "कार्ट्रिज में इंक"....!!!
एक एकांत सी जगह खोज रहा था मैं...
शायद सुनसान सा कब्र खोद रहा था मैं...!!!कहने को काफी दलीले थी मन में..
चेहरे पर चादर ओढ़कर सो रहा था मैं...!!!
किसी कौतुहल से डरे हुए जीवन के...
ना जाने किसके पुराने बाँट जो रहा था मैं...!!!
किसी प्लेटफोर्म चीरकर धडधडाती रेल जैसे...
कितनो की जीवन में हल्ला बोल रहा था मैं...!!!
एक छत थी टपकती हुयी आशियाने में...
उससे अपनी दामन भीगो रहा था मैं...!!!
धुन भी थी मदमस्त हवाओं की आज...
फिर भी पंख उतार कर सो रहा था मैं...!!!
कितने काफिले आये गए यहाँ कौन बताये...
किसके पैरोंकी खनक को मसोश रहा था मैं...!!!
"एक छत थी टपकती हुयी आशियाने में
जवाब देंहटाएंउसे अपनी दामन को भीगो रहा था मैं"....बहुत खूब शेर हैं
शिखा दीदी आपका आभार की आपने अपने वक़्त की साख से कुछ फूल यहाँ भी महकाए...!!
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