पुराने स्टोर रूम में बिफरा पड़ा था...
एक बुजुर्ग आइना...
मिट्टी सनी दाहिने हाथ की बुसट में...!!
बड़ी नर्म कलाइयों से झाड़ रहा...
पानी गिर रहा अन्दर ही मेरी अक्स से...
रो तो न रहा मैं...बाहर से...!!
साफ़ कर दिया...कुंडी में फंसे कपडे से..
उठा लाया उसे एक झूठ तामिल कराने...!!
रोज झांकता उसमे कितनी खुदगर्जी से..
पर देख बुढ़ापे में भी कितना
साफ़ देखता..वो बुजुर्ग आइना...!!
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