बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

इलाहबाद कुम्भ मेला...!!!!


त्रिवेणी के तट पर बैठा जाने कितने एहसास को अपने में लिए जा रहा हूँ...कुछ शाम की चमक हैं...साजो सजावट हैं...लोग हैं हाँ मुकुट धारी...!!!
फरवरी के चौदह तारीख...
उड़ेल रही अपनी चमक...!!!

बीहड़ो को काटते बड़ी मस्ती से...
बहती आ रही जमुना भी...
गले लगाने को आतुर संगम पर...!!!

पश्चिम की ओर बैठा सूरज...
मुहर लगा रहा सबके उपस्थिति की...!!!

कोई छुप के देख रहा बिना आये...
गंगा घुल रही जमुना में...!!!

सरस्वती मौन हैं साबुन लिए...
धुल रही सभी के पाप ...!!!

नैनी का पुल भी पहन लिया...
नयी आवरण देख मटक रहा...!!!

अकबर का किला सब कुछ साक्षी हैं इन त्रिवेदियों की हर एक कल-कल का...पूछ लेना बाद में सब कुछ हु-ब-हु बताएगा ये....सच कह रहा आज याद आ गए कुछ और पंक्तियाँ...जन कवि कैलाश गौतम की...!!!
"याद किसी की मेरे संग वैसे ही रहती हैं...
जैसे कोई नदी किसी किले से सटकर बहती हैं...!!!"

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