धूप के साये मे निशान कहाँ आते...
टूटी शाख पे अब इंसान कहाँ आते...॥
ख्वाब अधूरे ना छूटते बशर के...
ख्वाब अधूरे ना छूटते बशर के...
रातों को जगाने अब हैवान कहाँ आते...॥
जुबान छिल जाती गज़लों की महफ़िलों मे...
जुबान छिल जाती गज़लों की महफ़िलों मे...
जुम्मे की दुपहरी पे अब अजान कहाँ आते...॥
दुवाओ के थूकदान सजाते दरवाजे पर...
दुवाओ के थूकदान सजाते दरवाजे पर...
इस सुनसान मे अब मेहमान कहाँ आते...॥
ख्वाइशों की कतार लगाए खड़े हम...
मीरा के शहर मे अब घनश्याम कहाँ आते...॥
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