उचक के झांक रहे...
पुराने यादों के अक्स...!!
पर्दो पे पेंग मारते...
पतझड़ के गमगीन भौरे..!!
कितने अरमान अपने पर
लादे उतार उन्हे ज़रा...!!
कुछ चौड़े लंबे ठहरे...
गर्दन झुकाये घुस रहे...!!
अब बुला रहा तेरी
कोहनी छूने को बर्जा...!!
थोड़ा बेताब हैं वो...
रील घूमा के चलाने को...!!
देखेगा वो भी साथ बैठे...
रोने मत देना उसे...!!
वरना लोग सोचेंगे...
गर्मियों मे अबसार कैसे...!!
~खामोशियाँ©
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