आँखें कोरी थी और कोई बसता गया..
बिछड़े ऐसे की मन मसोसता रहा..!!
फटे ख्वाब की लुगदिया भरी जेबों में..
कोई संजोता गया मैं बिखेरता रहा..!!
जो सबपे बोझ था कहीं छूट गया..
रात निकलती गयी दिन ढलता रहा..!!
कोई और असर था प्यार के साथ भी..
वादे गिनते रहे सफ़र कटता रहा..!!
अँधेरी रात में डाकू दिखे आते..
जुगनू सोये रहे घर लुटता रहा..!!
बचा ना कुछ जली यादों के सिवा..
अंगीठी तपती रही वक़्त सेंकता रहा..!!
बिछड़े ऐसे की मन मसोसता रहा..!!
फटे ख्वाब की लुगदिया भरी जेबों में..
कोई संजोता गया मैं बिखेरता रहा..!!
जो सबपे बोझ था कहीं छूट गया..
रात निकलती गयी दिन ढलता रहा..!!
कोई और असर था प्यार के साथ भी..
वादे गिनते रहे सफ़र कटता रहा..!!
अँधेरी रात में डाकू दिखे आते..
जुगनू सोये रहे घर लुटता रहा..!!
बचा ना कुछ जली यादों के सिवा..
अंगीठी तपती रही वक़्त सेंकता रहा..!!
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