बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

खिड़कियों से झांकती बयार....!!!


इन सर्दियों के मौसम में ट्रेनों में यात्रा करने का अनुभव की अलग होता...ट्रेन झूमते हुए चलती बचकानी हरकते करते...उसपे हलकी ठंडी बयार आ जाती जुल्फों को सहलाने...आहा कितना गजब का अनुभव होता अब क्या बताये ....!!!
बड़ी तेज़ी में भागते इन सर्द डिब्बो से,
देख कैसे लुका छीपी खेलती हैं बयार..!!

बता रखा हैं शीशों से ना मिलने को,
फिर भी टकरा कर जान दे रही हैं यार..!!

अब जाके कौन समझाए उन्हें कि,
ये खेल रात में नहीं खेलते हैं बार बार..!!

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