अम्मा आपके कोई बाल-बच्चे हैं...एक तडाक से आवाज आई...
बाल-बच्चे तो कोई नहीं हैं...बस तीन बेटियां हैं..!!!!
यह बात परिलक्षित करती है हमारी मानसिकता और सामाजिक स्थितियों को...भारतीय मां-बाप बेटियों को अपने सहारे के रूप में गिनकर नहीं चल सकते,
उन्हें पराई मानकर ही पाला जाता है..!!!
माथे पर टीका और थामे हाथ में झुनझुना...
लाल सूरज में अध्मुयीं सीपों सी जल रही...!!!
किरने भी फाक रही उसकी लटों की गोलियाँ...
भूल गया समाज देख बयार कंघा कर रही...!!!
लोग पुनमिया रात हुए भागे जैसे पिंड छुडाकर
देख यह अमावसी रात ही लोरी सुना रही...!!!
इतनी उल्फतों के फुहारे आर पार हुए फिर भी...
दिन भी हार गया और यह रण जीत रही...!!!
मुकद्दर रिसता आ गया ख़ाक के समुन्दरो से...
पर देख आज भी उन्ही तहखानो से लड़ रही ...!!!
लाल सूरज में अध्मुयीं सीपों सी जल रही...!!!
किरने भी फाक रही उसकी लटों की गोलियाँ...
भूल गया समाज देख बयार कंघा कर रही...!!!
लोग पुनमिया रात हुए भागे जैसे पिंड छुडाकर
देख यह अमावसी रात ही लोरी सुना रही...!!!
इतनी उल्फतों के फुहारे आर पार हुए फिर भी...
दिन भी हार गया और यह रण जीत रही...!!!
मुकद्दर रिसता आ गया ख़ाक के समुन्दरो से...
पर देख आज भी उन्ही तहखानो से लड़ रही ...!!!
कल बेटी दिवस पर लिखी गयी हमारी कुछ पंक्तियाँ पसंद आये तो सूचित करे..!!
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