उन बरसात के पानी में कितना अपनापन हैं...
हलकी सी बारिश में भी घुटनों तक चले आते बदन को छूने...
लड़ते गुजरते घरों मकानों के दीवारों से टकराते हुए...
पनाह देते खेल कर जीते हुए उन लडको को...
जो अपने आनंद को दर्शाने खातिर उतर जाते उनके गोद में...!!!
हलकी सी बारिश में भी घुटनों तक चले आते बदन को छूने...
लड़ते गुजरते घरों मकानों के दीवारों से टकराते हुए...
पनाह देते खेल कर जीते हुए उन लडको को...
जो अपने आनंद को दर्शाने खातिर उतर जाते उनके गोद में...!!!
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