सुबह उठाते ही एक आस के साथ पहुच जाते लोग चाय के मैखानो में...जैसे कितना नशा होता उसमे और बहकते हुए खोजते छप्पर जिसके तले कंडे पर उबलती हुई चाचा की चाय...साथ में वो पड़े रगीन अखबार आकर्षित करते सबको झपटने पर...!!!बड़ी अकेले सी जिंदगी चाय पीने निकली...
एक फटे पुराने छप्पर में रुककर वो...!!
अपने पुराने अल्फाजो को प्याले में डुबोकर,
कैसे उसे आराम से निगल रही...!!!
उसपे भी रो रहे चाचा की छत,
को ताक कर कुछ उसे इशारा करती...!!!
केतली से निकलती इलायची की अश्क,
उसे पकड़ कर जाने कहा सोच रही...!!!
गरमागरम चुस्की लेने को बेताब,
होंठो से दर्द फूँक फुंककर मिला रही..!!!
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