धुंध आँख से ओझल हो चूका हैं,
फूल डाल से टूट चूका हैं,
खो गया सब कुछ यहाँ भी,
दिशायें पहचान सब लुट चूका हैं..!!!
फूल डाल से टूट चूका हैं,
खो गया सब कुछ यहाँ भी,
दिशायें पहचान सब लुट चूका हैं..!!!
तलवार छुटी... अश्व घायाल,
देख ये क्या से क्या हो चूका हैं...!!!
कौन दुश्मन और कौन दोस्त,
सब धुंध से धुधला हो चूका हैं..!!!
सुना हैं भींड में जैकार सुनाई नहीं देती,
तभी इन मातमो को झीगुरो से सजा रखा हैं ...!!!
बस टूटा पहिया ही साथ रहे मेरे,
इन्ही के सहारे चक्रव्यूह को भी भेदा जा सकता हैं…!!!
देख ये क्या से क्या हो चूका हैं...!!!
कौन दुश्मन और कौन दोस्त,
सब धुंध से धुधला हो चूका हैं..!!!
सुना हैं भींड में जैकार सुनाई नहीं देती,
तभी इन मातमो को झीगुरो से सजा रखा हैं ...!!!
बस टूटा पहिया ही साथ रहे मेरे,
इन्ही के सहारे चक्रव्यूह को भी भेदा जा सकता हैं…!!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें