ख्वामोसियाँ जैसे उधेड़ गयी सारी रेशम से लिपटी ख़्वाबों की तस्तारियां ... !!!
शायद मेरी सलाई भी मुकद्दर चुरा ले गया ताकि दुबारा सिल ना सकू... !!!
अपनी यादों के उन लकीरों को... !!!
किस्मत तो शायद गर्दिसों की बालकनी में मजे ले रही हैं... !!!
और दूर सुनसान एक अकेली साहिल के करीब करीब बैठा मैं ... !!!
शायद मेरी सलाई भी मुकद्दर चुरा ले गया ताकि दुबारा सिल ना सकू... !!!
अपनी यादों के उन लकीरों को... !!!
किस्मत तो शायद गर्दिसों की बालकनी में मजे ले रही हैं... !!!
और दूर सुनसान एक अकेली साहिल के करीब करीब बैठा मैं ... !!!
एक ठूठे पेड़ जैसे उम्र और झंझावातों की मटीयाई सी चादर ओढ़े इन्तेजार कर रहा उस सावन का ... !!!
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