किसी अनजाने जगह को मैं तडपता हूँ..
अरसो से सोया हूँ फिर भी मैं बहकता हूँ...!!!
एक आग की चिगारी बदन में उतारने को,
सूखे रेतों में कितने पत्थरों को रगड़ता हूँ...!!!
एक बरस गुस्साई इस सांझ को मनाने को..
झील में उतरी चांदनी पकड़ने मचलता हूँ...!!!
बड़ी कशिश थामे उस फलक को देखते...
उनमे अपनी "आकृति" लिए बलखता हूँ...!!!
सुबह जल्दी आ जाती रात भगाने को...
तमाम सूरजों को जेबों में लिए टहलता हूँ...!!!
इतने अनबुझे राख थामे यादों के थैलों में...
जाने किस चमत्कारी भभूत खातिर तरसता हूँ..!!!
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