बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 2 सितंबर 2012

कभी कभी पूछते लोग...!!!

कभी कभी पूछ बैठते लोग कहाँ से उतार लेते खीचकर अपने भीगे अल्फाज हम...!!!
एक साथ कभी बैठती सुबह...जिसके कंधे पर छोटे बच्चे की तरह लदी बयार...!!!
पहुच जाती मेरे बालों के गांठो को खोलने...!!!
उसपर यह मंद मंद मुस्काता सूरज थोड़ी ही देर में उबल जाता जैसे फफक पड़ता ढूध से भरा भगौना..!!!

कुछ अब्र उसके आस पास घुमते मानो आँख मिचौली खेल रहे हो...!!!
इतनी सब के नीचे कैसे रखे कार्बन जो उभार दे सारी सिसकियों के पीछे छुपे बैठे वो जख्म...!!!
जाने इतना कुछ किस श्याही में उभरे अब उन्हें कौन बताए...!!!
कभी कभी पूछते लोग...!!!

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