कभी कभी पूछ बैठते लोग कहाँ से उतार लेते खीचकर अपने भीगे अल्फाज हम...!!!
एक साथ कभी बैठती सुबह...जिसके कंधे पर छोटे बच्चे की तरह लदी बयार...!!!
पहुच जाती मेरे बालों के गांठो को खोलने...!!!
उसपर यह मंद मंद मुस्काता सूरज थोड़ी ही देर में उबल जाता जैसे फफक पड़ता ढूध से भरा भगौना..!!!
एक साथ कभी बैठती सुबह...जिसके कंधे पर छोटे बच्चे की तरह लदी बयार...!!!
पहुच जाती मेरे बालों के गांठो को खोलने...!!!
उसपर यह मंद मंद मुस्काता सूरज थोड़ी ही देर में उबल जाता जैसे फफक पड़ता ढूध से भरा भगौना..!!!
कुछ अब्र उसके आस पास घुमते मानो आँख मिचौली खेल रहे हो...!!!
इतनी सब के नीचे कैसे रखे कार्बन जो उभार दे सारी सिसकियों के पीछे छुपे बैठे वो जख्म...!!!
जाने इतना कुछ किस श्याही में उभरे अब उन्हें कौन बताए...!!!
कभी कभी पूछते लोग...!!!
इतनी सब के नीचे कैसे रखे कार्बन जो उभार दे सारी सिसकियों के पीछे छुपे बैठे वो जख्म...!!!
जाने इतना कुछ किस श्याही में उभरे अब उन्हें कौन बताए...!!!
कभी कभी पूछते लोग...!!!
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