खुद को साजाएं देके उसे ढूढते रहे .. !!
यादें हो किसी अधजली लकड़ी जैसे ..
बार बार उसमे आयतें फूकते रहे .. !!
हर एक निकलते धुएं को पकड़ ...
बार बार उसमे आयतें फूकते रहे .. !!
हर एक निकलते धुएं को पकड़ ...
हम भी बस उसी की "आकृति" गुथते रहे .. !!
एक आग सहारे बैठे उन बर्फीले गुफाओं में ..
खून के सफ़ेद होने का इन्तेजार करते रहे ..!!
इन बर्फो पर जमा किया रंगीन गुल फिर भी ..
बांज की कोख जितनी ही उम्मीद पालते रहे .. !!
एक आग सहारे बैठे उन बर्फीले गुफाओं में ..
खून के सफ़ेद होने का इन्तेजार करते रहे ..!!
इन बर्फो पर जमा किया रंगीन गुल फिर भी ..
बांज की कोख जितनी ही उम्मीद पालते रहे .. !!
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