बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

आयतें फूकते रहे...


खुद को साजाएं देके उसे ढूढते रहे .. !!

यादें हो किसी अधजली लकड़ी जैसे ..
बार बार उसमे आयतें फूकते रहे .. !!

हर एक निकलते धुएं को पकड़ ...
हम भी बस उसी की "आकृति" गुथते रहे .. !!

एक आग सहारे बैठे उन बर्फीले गुफाओं में ..
खून के सफ़ेद होने का इन्तेजार करते रहे ..!!

इन बर्फो पर जमा किया रंगीन गुल फिर भी ..
बांज की कोख जितनी ही उम्मीद पालते रहे .. !!

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