एक खाली
पड़े मकान से
जाने कितनी बार बात हुई...
कई रात
दोनों साथ काटें
सिरहाने तक लगवाए साथ...
रात मे
दियासलाई मार के
कितने अँधेरों को भगाए साथ...
देख आगन
पर कैसे टॉर्च
मार दोनों की तलाशी ले रहा अब्र...
बयार भी
दरवाजे पर कुंडी
पकड़ झूलती नजर आ रही...
सम्मे चिपके
कान लगाए चाह
रहे सुनना हम लोगों की फूस-फूस...
अब खोल
भी दे देख दरीचों
तलक आ पहुचे जुगनू रोते रोते...
देख अब
कहा तू अकेला
सब तो हैं चल आज माना ही ले...
... गमो का जन्मदिन...
जवाब देंहटाएंकल दिनांक 04/04/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
आपका आभार यशवंत सर ...!!!
हटाएंबयार भी
जवाब देंहटाएंदरवाज़े पर
कुंडी पकड़ झूलती नज़र आ रही है........
बहुत सुन्दर!!!
अनु
वाह ... क्या बात है ... ग़मों को भी जी लेना चाहिए ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब ख्याल ..
सुन्दर प्रस्तुति .........
जवाब देंहटाएं