हर रोज़....
साहिल पर बैठे.......
कभी गुलमोहर की ओट लिए...
शब खेल रही आँख-मिचौली...
और पकड़ गया गोला...
अब जाना होगा तुझे....
कल फिर आना...!!
~खामोशियाँ©
साहिल पर बैठे.......
निहारता
एक गोल मटोल....
एक गोल मटोल....
फूटबाल...
गिरता जाता
गिरता जाता
मटमैले पाले मे...!!
कभी गुलमोहर की ओट लिए...
झाँकता आखें छुपाए...!!
शब खेल रही आँख-मिचौली...
और पकड़ गया गोला...
अब जाना होगा तुझे....
कल फिर आना...!!
~खामोशियाँ©
ये खेल निरंतर चलता रहता है! बस पारी बदलती है! आज किसी और निर्णय को ले कर फुटबाल के अगले दिन आने तक मैदान वही .......
जवाब देंहटाएंफिर वही दौड...
गहरे भावार्थो को लिये आपकी अत्यंत ही सार्थक रचना !
बहुत खुब दोस्त !