दुपहरी वक़्त सेंकती
धरा तपता तावा लिए...!!
लूह के थपेड़े जला रहे
बार-बार बुझती अगीठी...!!
साँझ रोज़ चाली आती
थामे रंग बिरंगे आइस-क्रीम ...!!
आज भी याद वो पश्मीना
शाल ओढे दरवाजा...
काट लिया पूरी सर्दी...!!
पसीने छूट रहे उसके...
शीशम रो रहा शायद...!!
खीच के देख ले करकराहट
जमी हैं उसकी सिसकियों मे...!!
~खामोशियाँ©
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