अकेली आँखों में ऐसी खुमारी दे दे,
कहीं धूप दिखे तो मुझे उधारी दे दे।
मर्ज गिनता रहता रोज कागजों में,
मन भर जाए मुझे ऐसी बीमारी दे दे।
तनहा दौड़ती सुस्त रातों में गलियां,
यार मिल जाए मुझे ऐसी सवारी दे दे।
थक गया मैं अल्फाजों की रद्दी जुटाते,
दर्द ले जाए मुझे ऐसी आलमारी दे दे।
(मिश्रा राहुल) (07-दिसंबर-2017)
(©खामोशियाँ-२०१७)(डायरी के पन्नो से)
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