बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

खुमारी

अकेली आँखों में ऐसी खुमारी दे दे,
कहीं धूप दिखे तो मुझे उधारी दे दे।

मर्ज गिनता रहता रोज कागजों में,
मन भर जाए मुझे ऐसी बीमारी दे दे।

तनहा दौड़ती सुस्त रातों में गलियां,
यार मिल जाए मुझे ऐसी सवारी दे दे।

थक गया मैं अल्फाजों की रद्दी जुटाते,
दर्द ले जाए मुझे ऐसी आलमारी दे दे।

(मिश्रा राहुल) (07-दिसंबर-2017)
(©खामोशियाँ-२०१७)(डायरी के पन्नो से)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें