यूँ राख हुआ था अरमान जलते ही,
कोई मिल गया था मुझे निकलते ही।
लोगों के पॉकेट की तलाशी लीजिये,
वो चाँद दिखा था मुझे साँझ ढलते ही।
दोनों हाथ सने थे लाल दस्तानों से,
ख्वाब दिखा था मुझे हाथ मलते ही।
ढूंढता गया कितने मुखौटे उतार कर,
उससे मिलना था जो मुझे चलते ही।
कितने नक्शे बदले तुझे खोजने में,
हर मोड़ खड़ा था रास्ते बदलते ही।
- मिश्रा राहुल (0९-दिसंबर-२०१७)
बहुत बढ़िया ...बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... चाँद वाला शेर तो लाजवाब है ...
जवाब देंहटाएंपूरी ग़ज़ल जबरदस्त ...