रेलवे स्टेशनों की
.... धक्का-मुक्की में अड़े....
मोहब्बत की रेवड़ी-पैकेट थामें....
उसकी आँखों में...
जाने कितने नववर्ष के सूर्य
.... ढलते देखा है मैंने....!!!
©खामोशियाँ-२०१३
भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
हमे गुस्सा है उन लेखकों से जो अपने एहसासों की लहरें बस डायरी के सफ़ेद पन्नो मे उड़ेल कर अपने मेज़ के कोने मे झटक देते.....!!!
एहसास का भी उसमे पड़े पड़े दम घुटता जाता और वो मर जाते....सिमट जाते किसी कबोर्ड की धूल भरी आलमारी ताकते.....!!!अगर आपके पास कुछ हैं वो उसे बाहर आने दे.....ब्लॉग को जरिया बनाए....
कल देखा....****************************************************
But Please Don't Strangle your emotions which are with you....Make them to burst a Fountain of Bliss to Bath everyone.....!!!****************************************************
इस ठंड मे इतनी ओस पड़ रही कि दूर छोड़िए पास ही देख पाना मुमकिन नहीं हो पा रहा....रेल से लेकर हवाई-जहाज सब मंद पड़ गए है.....और ज़रा सी तेज़ी सीधा हॉस्पिटल पहुंचा दे रही लोगों को....तो बस इसी परिपेक्ष मे हमने कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं ज़रा गौर कीजिएगा.....!!!
वादे तो वादे ही ठहरे आजकल के चाहे वो इंसानी हो या खुदा के....टस-से-मस ना होते....अढ़उल हो या अगरबत्ती मानने को तैयार नहीं.....उन्हे भी चाहिए....नए भगवान....नयी मिठाई....सब कुछ चाहिए एडवांसड....अपडेटड....पुराने पैंतरे से अब हल ना होगी समस्या....जितनी जटिल होगी समस्या उतना महंगा हो मेवा.....खैर अब कुछ पंक्तियाँ....!!!
अक्स धुंधला गया...कसैली साँझ...
फीलिंग भी आजकल बिजली के टिमटिमाते बल्ब जैसी हो गयी हैं अभी आती अभी चली जाती है.....हर फीलिंग अब तो शब्दो की खाल बन गयी है.....तेज़ भागते आज के दौर मे ज़रा सी समय की कमी है वरना लोग तो बिन बोले ही कितना ज्यादा समझा जाते....!!!हर एहसास को जरूरी नहीं की किसी भाषा के धागे मे पिरोया जाये....!!!
एक बच्चा खेलते वक्त सीढ़ियों से गिरा .. उसकी रीढ़ में चोट लगी और उसने बिस्तर पकड़ लिया ! कुछ दिन रिश्तेदार और दोस्त देखने आये फ़िर, धीरे-धीरे सबका आना कम होते-होते बंद हो गया । अकेलापन उसे खाने लगा .... वो बेचैन हो उठा ...तब एक दिन उसकी माँ एक तोता ले आई ...। मिट्ठू .. चोंच बड़ी.. बहुत ही तेज ...चीख कर बोलने वाला छोटा सा मिट्ठू ..! बच्चे ने उसे बोलना सिखाया .. रोज नए शब्द .. रोज नई बातें ! फिर ......धीरे-धीरे वो बच्चा चलने फिरने लगा .. ! फिर दोस्तों में व्यस्त रहने लगा । पढ़ाई और स्कूल ....मिट्ठू को देने के लिए वक्त नहीं था ...अब उसके पास ! मिट्ठू उसको आते-जाते देखता और नाम पुकारता । उसने खाना छोड़ दिया । फिर .. कुछ दिनों के बाद कमजोर हो गया... वो पहले बिल्ली के आते ही बहुत शोर मचाता था .. दो दिन से कुछ बोला नहीं ! सुबह ...लथपथ .. खून से सना पिंजडा मिला !धमा-चौकड़ी खूब मचाई....
अंजुरियाँ रूठ गयी थी....कलम सिसक रहे थे....नोट पर गोजने खातिर देख कैसे तरस रहे थे....!!!
आज रहा ना गया बस लिख दिया कुछ ऊबड़ खाबड़ पंक्तियाँ भाव मे अंदर तक डूबना फिर बताना कैसा रहा सफर...ऊपर ऊपर तैरने पर गहराइयों का अंदाज़ा ना लगा पाओगे ए बशर...!!
तो पढ़िये ताज़ातरीन ग़ज़ल....!!