बांध के सब्र मे तुम...
ढूंढ लो गहराई भी....!!!
जिसमे उतार कर मैंने...
सुखाई हैं तनहाई भी...!!!
इन धूप के जंगलो से
बचाकर तराशा उसे...!!!
वरना कहाँ सरकती हैं...
आग मे पुरवाई भी...!!!
साथ उनके आने से
उठ पड़ी कब्रे...!!!
वरना कितने मुद्दतों से
पकड़ा था परछाई भी....!!!
©खामोशियाँ-२०१३
धूप के जंगलों से बचाकर सुखाई पुरवाई के झोंके ....कुछ उदास कुछ हसीन हैं
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत
दीदी धन्यवाद की आप यहाँ पर पधारे मेरा ब्लॉग धन्य हो गया
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