बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

अकेली दीवाली


देख सूनी पड़ी वादियाँ सूने हैं मुंडेर.....
कहीं रोशनी ठहरती तो कहीं हैं अंधेर.....!!!

दिए तो बराबर ही जलते रहे हरसू.....
रातें पूछती रहती कहाँ बदलते सवेर....!!!

कितनी दीवालियाँ अकेली गुजारी तूने.....
पटाखे भी चीखते दिखे तेरे बगैर.....!!!

कोई क्या कहे कितनी बदल गए यूँ....
हम रहे गए गरीब दुनिया बनी कुबेर.....!!

रो-रो के कितना बदहाल किये हैं बैठे....
आखें रहे तब तो लगे हाथो मे बटेर....!!

©खामोशियाँ-२०१३

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (01-11-2013) ना तुम, ना हम-(चर्चा मंचः अंक -1416) "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    धनतेरस (धन्वन्तरी महाराज की जयन्ती) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. पोस्ट को तवज्जो देने लिए धन्यवाद।

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  3. सुन्दर भाव ... सार्थक रचना ...
    दीपावली के पावन पर्व की बधाई ओर शुभकामनायें ...

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