कहीं रोशनी ठहरती तो कहीं हैं अंधेर.....!!!
दिए तो बराबर ही जलते रहे हरसू.....
रातें पूछती रहती कहाँ बदलते सवेर....!!!
कितनी दीवालियाँ अकेली गुजारी तूने.....
पटाखे भी चीखते दिखे तेरे बगैर.....!!!
कोई क्या कहे कितनी बदल गए यूँ....
हम रहे गए गरीब दुनिया बनी कुबेर.....!!
रो-रो के कितना बदहाल किये हैं बैठे....
आखें रहे तब तो लगे हाथो मे बटेर....!!
©खामोशियाँ-२०१३
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (01-11-2013) ना तुम, ना हम-(चर्चा मंचः अंक -1416) "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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धनतेरस (धन्वन्तरी महाराज की जयन्ती) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
पोस्ट को तवज्जो देने लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव ... सार्थक रचना ...
जवाब देंहटाएंदीपावली के पावन पर्व की बधाई ओर शुभकामनायें ...