बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

मंगलवार, 25 जून 2013

कुछ हुआ ही नहीं....!!


जगमगाते पीले आसमान के
कोरों से होकर...
आज भी सीधे
धंसते हैं तीखे तेवर..!!

जोर से चीखता बादल
मानो लग गयी फ़लक को
उधड़ गए हो महीन टांके...!!

बह रहा लहू
भीगे जा रहे सफ़ेद अब्र...
रो रहा कबसे
चुप ही नहीं होता....!!

और तुम कहते
कुछ हुआ ही नहीं....!!

©खामोशियाँ

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बेहतरीन रचना राहुल जी ।........

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  2. हाँ अभी तक जो कुछ भी हुआ और जो हो रहा है उतना काफी नहीं है हमारे प्रशासन और उसकी साकार के लिए क्यूंकि अभी तो देश का फिर से गुलाम बनना अभी बाकी है।

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  3. वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
    पहली बार ब्लाग पर आया

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