बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

सोमवार, 10 जून 2013

उफ़्फ़ ज़िंदगी


मुझे जीने का आलम सीखा दी...
जिंदगी ना पूछ कितनी बार दगा दी...!!!

हर रोज़ जा ठहरते किसी सिग्नल पे...
ट्रेन आने से पहले ही फाटक गिरा दी....!!

कुछ पैंतरे मेरे भी चले उस रोज़...
बस पत्ते फेंटते गए और बेगम हटा दी...!!

अब कुछ ना रहा पहले जैसा...
बिना दलील लिए इतनी बड़ी सजा दी...!!

©खामोशियाँ

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया प्रस्तुति .....

    नहीं पता कब किसको किसके आगे रोना-झुकना है,
    इस रंग बदलती दुनिया में कब कितना जीना-मरना है...

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  2. बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

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