हमने करीब से कब्रिस्तान देखे हैं....!!
लोग ठहरते ही कहाँ आशियाने मे...
हमने अकेले मे रोते मकान देखे हैं....!!
तोड़कर रिश्तों की चारदीवारी को...
हमने रोज़ भागते समान देखे हैं...!!
अपनों की पूछ हैं ही कहाँ किसी को...
हमने गैरो की मन्नतें अज़ान देखे हैं...!!!
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