अंजुरियाँ रूठ गयी थी....कलम सिसक रहे थे....नोट पर गोजने खातिर देख कैसे तरस रहे थे....!!!
आज रहा ना गया बस लिख दिया कुछ ऊबड़ खाबड़ पंक्तियाँ भाव मे अंदर तक डूबना फिर बताना कैसा रहा सफर...ऊपर ऊपर तैरने पर गहराइयों का अंदाज़ा ना लगा पाओगे ए बशर...!!
तो पढ़िये ताज़ातरीन ग़ज़ल....!!
कितनों ने कितना जख्म बखश़ा है...
आज उसका हिसाब करने बैठा है...!!
ज़िंदगी भर काम आए जो वसूल....
आज उन्हे ही बंदा बेचने बैठा है...!!
जिन चिरागो ने तेल कभी नहीं पीया...
आज उनको जाम पिलाने बैठा है...!!
बदल जाती चाहने वालो की तस्वीर...
आज कल कौन दर्द भुलाने बैठा है...!!
गैरो को फुर्सत कहाँ अपने पास आने की...
आज अपना ही हमे रुलाने बैठा है...!!
©खामोशियाँ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (14-07-2013) को कई रूप धरती के : चर्चा मंच १३०६ में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
धन्यवाद सर....!!!
हटाएंबहुत खूब ... हर शेर लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंक्या बात है ...
धन्यवाद...!!!
हटाएंखूबसूरत ग़ज़ल .....हर शेर बेमिसाल....
जवाब देंहटाएंसाभार.....