बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 14 जुलाई 2013

मुसाफ़िर


कड़ी धूप पसरी हैं टटोलते आना....
इधर गुजरना उन्हे छोड़ते जाना...!!

इलाके रहेंगे जहां लोग ना ठहरते....
यादों के पिटारे बस छुपाते जाना...!!

रात की खामोशी पूछेगी रास्ता...
झींगुरों की आवाज़े बताते जाना...!!

आज देर रात ना जगेगी चाँदनी...
आना तो ज़रा उसे जगाते जाना...!!


©खामोशियाँ

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रशंसनीय रचना
    बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में !!

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार१६ /७ /१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है

    जवाब देंहटाएं