बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

मकान बदल जाते



चीख के हर रोज़ अज़ान बदल जाते.....
इंसान ठहरे रहते मकान बदल जाते....!!!

उम्मीद इत्तिला ना करती गुज़रने की...
धूप के साए ओढ़े श्मशान बदल जाते....!!!

दोस्ती-यारी भी अब रखते वो ऐसों से...
एक छत तले कितने मेहमान बदल जाते....!!!

साथ तो आखिर तक ना देता अक्स तेरा....
दिन चढ़ते परछाइयों के 
अरमान बदल जाते....!!!

©खामोशियाँ-२०१३

4 टिप्‍पणियां:

  1. सच कहा है ... दिन के साथ साथ परछाइयां बदलने लगती हैं .... सच को लखा है शेर से ...

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    1. दिगंबर सर....स्वागत है.....
      परछाई तो बड़ी बेवफा रहती....
      जितनी लंबी उतनी छोटी दिखती.....!!!

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  2. अंजु मैम आप पधारे हमारे ब्लॉग पर हम धन्य हो गए.....सुस्वागतम.....और हार्दिक अभिनंदन..

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