किसी दर्द की सिरहाने से....
बड़ी चुपके से निकलती....
अधमने मन से
बढ़कर कलम पकड़ती.....!!!
कुछ पीले पत्र....
पर गोंजे गए शब्द....
कभी उछलकर रद्दी मे जाते....
कभी महफ़िलों मे रंग जमाते....!!
शायद ही कोई होता ....
जो बना पाता किसीके
"नज़्म का नक्शा"....!!!
©खामोशियाँ-२०१३
बहुत खूब ... दर्द के शब्दों से खींचा नज्म का नक्शा ... फिर भी पूरी नहीं होती नज़्म ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.......लाखों जतन करके भी मुक्कमल नज्में नहीं बन पाती हैं....
जवाब देंहटाएंआपके blog पर पहली दफे आये हूँ ....बहुत अच्छा लगा!!
बधाई
अनु
अनु मैम.....सुस्वागतम....हार्दिक आभार.....!!!
हटाएंदिगंबर साहब......प्रणाम....एक बार फिर आपको ब्लॉग पर देख अच्छा लगा....!!..
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