बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

बचपन


भीख की आधी कटोरी 
मजबूरी से भरकर.....
ज़िंदगी के ट्राफिक सिग्नल 
लांघता बचपन....
इसी तेज़ी मे जाने कितने 
झूठे नियम तोड़कर.....
खुद को ठगा-ठगा हुआ सा 
मानता बचपन.....!!! 

होटलो के खुरदुरे बर्तन को 
माज़-माज़कर.....
कितनी कड़वाहट खुद को 
समेटता बचपन.....!!!
सुबह से शाम तक 
कबसे पेट दबाये बैठा.....
झूठन से ही अंत मे भूख 
मिटाता बचपन......!!!

थोड़े से दुलार ढेर सारे 
प्यार खातिर कब तक.....
कूड़े की गठरों मे उम्मीदों को 
तलासता बचपन....!!!
सुख की छाँव से 
कोसों दूर तलक बैठकर.....
धूप मे परछाइयों को गले लगा 
बिलखता बचपन.....!!!

©खामोशियाँ-२०१३

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