भीख की आधी कटोरी
मजबूरी से भरकर.....
ज़िंदगी के ट्राफिक सिग्नल
ज़िंदगी के ट्राफिक सिग्नल
लांघता बचपन....
इसी तेज़ी मे जाने कितने
झूठे नियम तोड़कर.....
खुद को ठगा-ठगा हुआ सा
खुद को ठगा-ठगा हुआ सा
मानता बचपन.....!!!
होटलो के खुरदुरे बर्तन को
माज़-माज़कर.....
कितनी कड़वाहट खुद को
कितनी कड़वाहट खुद को
समेटता बचपन.....!!!
सुबह से शाम तक
कबसे पेट दबाये बैठा.....
झूठन से ही अंत मे भूख
झूठन से ही अंत मे भूख
मिटाता बचपन......!!!
थोड़े से दुलार ढेर सारे
थोड़े से दुलार ढेर सारे
प्यार खातिर कब तक.....
कूड़े की गठरों मे उम्मीदों को
कूड़े की गठरों मे उम्मीदों को
तलासता बचपन....!!!
सुख की छाँव से
कोसों दूर तलक बैठकर.....
धूप मे परछाइयों को गले लगा
धूप मे परछाइयों को गले लगा
बिलखता बचपन.....!!!
©खामोशियाँ-२०१३
©खामोशियाँ-२०१३
डॉ साहब....धन्यवाद....आभार....
जवाब देंहटाएंअनगिनत बचपनों का नक्शा उतार दिया शब्दों से ....
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