अक्स धुंधला गया...कसैली साँझ...
फीलिंग भी आजकल बिजली के टिमटिमाते बल्ब जैसी हो गयी हैं अभी आती अभी चली जाती है.....हर फीलिंग अब तो शब्दो की खाल बन गयी है.....तेज़ भागते आज के दौर मे ज़रा सी समय की कमी है वरना लोग तो बिन बोले ही कितना ज्यादा समझा जाते....!!!हर एहसास को जरूरी नहीं की किसी भाषा के धागे मे पिरोया जाये....!!!
...........अचानक आ धमकी....!!!
पता ही न चला कैसे एकाएक.....
फूट पड़े सारे ज़री के गुब्बारे....!!!
और ढाँप लिया पूरे समुंदर को....
मानो परिचित हो.........
.......जनम-जनम से एक दूजे से....!!!
©खामोशियाँ-२०१३
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंगजब-
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी -
स्वागतम आप सभी का मेरे ब्लॉग पर....!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंगहरी बात कहदी आपने बड़े ही कम शब्दों में....
जवाब देंहटाएंBAHUT SARTHK LEKHAN .BADHAI
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