भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013
ज़िंदगी का नज़रिया
पल मे ही तो बदल लेती नज़रिया आकने का.....
वरना खूबसूरती की कबतक सागिर्द होगी मोहब्बत .....!!
रोज़ ही तो मिल जाते चेहरे नए "सिकन" ओढ़े....
वरना सादगी की इम्तिहान कबतक पास होगी फितरत....!!!
कुछ सीख ले वक़्त रहते तू भी इस ज़िंदगी से....
वरना ऐसे मे अकेले कबतक बहकी होगी शिद्दत....!!
कुछ लकीरें उधार हो जाते खुद-ब-खुद प्यार के.....
वरना मौत के चौराहे कबतक तड़पी होगी किस्मत....!!!
©खामोशियाँ-२०१३
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पथरीली रास्तों पर की कहानी और है.. सिसकती आँखों में नमकीन पानी और है..!! टूटा तारा गिरा है देख किसी देश में.. खोज जारी है पर उसकी मेहर...
बेहद खूब
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव
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