बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 30 अगस्त 2014

पहचान


देखने को सारे जमाने घूम आए,
कहने को सारे पुराने ढूंढ लाए।

मिलते कहाँ है हर सींप में मोती,
खोजने को सारे बहाने ढूंढ लाए।

पहचान होती ही गयी अपनों की,
सहने को सारे ठिकाने ढूंढ लाए।

धूप गलियों में आई भी तो कैसी,
जलने को सारे फसाने ढूंढ लाए।

ऊब चुके ज़िंदगी की बेरहमी से,
मिलने को सारे तराने ढूंढ लाए।

©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (३०-अगस्त-२०१४)

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