बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 17 अगस्त 2014

चाँद-फ़लक


गुस्सा तो
फ़लक से भी
होता है चाँद।

रोज़ झगड़ता
रोज़ कटता हैं।

फिर एक दिन
अचानक से
गायब हो जाता।

खूब रोता
फ़लक उस दिन
उसके खातिर।

पिघल जाता
आखिर प्यारा चंदा।
फिर आता
नए रूप,
नए रंग में
उसी चमक के साथ।

पंद्रह दिन
तक फिर से,
अपने सीने
लगाने को
तैयार खड़ा फ़लक।
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चाँद-फ़लक
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(१७-अगस्त-२०१४)(डायरी के पन्नो से)

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