डाल रहा,
गौहर ज़िंदगी के।
परख कर,
चुन-चुन कर
बारी बारी से।
हर खूबसूरत मोती
टकराता दूजे से,
आवाज़ होती।
ज़ख्म भी लगते,
रगड़ खा घिस जाते।
पर सब
मिलते तभी,
तो बनती एक
सुंदर मुक्ताहार।
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©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(१७-अगस्त-२०१४) (डायरी के पन्नो से)
बनना हो माला तो पिरणा होगा...बिंधना होगा...सुंदर रचना !
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