बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 30 अगस्त 2014

एहसास


शिकायत...दुलार...प्रेम...डांट....!!

दूर से ही इतने सारे इमोशन की स्माइली बनाए बिना ही चेहरे पर कई सारे भाव उतर आए।
कान और कंधे के बीच में मोबाइल फोन आजकल किसी सैंडविच से कम नहीं लगता।

चाय की गिलास एक हाथ में कसकर पकड़े। दूसरे में सुनहरे रंग की जीरा युक्त बिसकुट लिए। साथ में कुछ मीठी मीठी गपशप। हल्की हल्की चुस्की के साथ हल्की हल्की वार्तालाप। चेहरे की चमक से हर कोई अंदर की बात की गहराई का अंदाजा आसानी लगा जाए।

ना समय का ख्याल....ना जगह का बवाल...खो जाए ऐसे की गुम हो जाए रास्ते। फिर पूछ कर आना पड़े उन्ही रास्तों को। अगल - बगल की चिल्ल-पों सुनाई ना दें हल्की आहट से जुबान की अगली बोल परख ले। दर्द में महसूस करे खुशी मैं झूम जाए। कुछ तो रहता है शायद कुछ तो रहता है।

- मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)

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