कृष्ण की बांसुरी रोने लगी है।
सांसों का मेल होता था कभी,
यादों की तश्तरी खोने लगी है।
पलभर में पास होता था कभी,
रातों की कजरी सोने लगी है।
लबों में खास होता था कभी,
बातों की मिस्री धोने लगी है।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नों से)(२६-०८-२०१४)
कवि मन के उम्दा खयालात !
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
सब कुछ बदल रहा है , बदल जाने दीजिये, अच्छी रचना
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