भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
शुक्रवार, 8 अगस्त 2014
बचपना:
बचपना हमेशा ही अच्छा होता। इंसान को समझ ही नहीं आनी चाहिए। वो आजीवन बच्चा बन कर काट दे। समझ लोभ को जन्म देती। लोभ मति भ्रस्ट कर देता। मति भ्रस्ट इंसान जानवर होता।
इंसान तो वो है जो सभ्य हो, आशावादी हो, कर्मनिष्ठ हो। किसी को आहत ना करे किसी भी तरीके से। आखिर भारत इसी वजह से तो विश्व में प्रसिद्ध है।
अगर आपको देश के लिए कुछ करना है तो प्रोफ़ाइल पिक्चर झण्डा लगाने से नहीं होगा। एक छोटी सी पहल करिए। संस्कृति बचाइए जो इस देश की धरोहर है। जो इस देश को वैश्विक पटल पर जिंदा रखे है।
और यह काम आप महज़ कुछ बातों का ध्यान रखकर मुफ्त में कर सकते। जरूरी नहीं हम देश सेवा बस पैसे/आधारभूत संरचना से ही करे। देश की विरासत बचाने में किया गया काम भी देश हित ही है।
क्या करना:
- आप अनिष्ट ना सोचे किसी की कभी भी
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ।।
(सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े ।)
- आप जो कदम उठाने जा रहे उससे क्या किसी आत्मा को कष्ट होगा। आप उन जगह खुद रखकर फैसला करे।
- मीठी बोली/सुंदर विचार/आदर्श नियम के मेल को आप बेहतर तरीके से ढाले।
- किसी की तारीफ करने से हिचके नहीं उसमे आप का कोई पैसा खर्च नहीं होता।
सभ्यता ज़रूरी है देश के वजूद के लिए। सभ्यता अगर खंडित हो गयी तो ना हिंदुस्तान रहेगा ना हम।
तो क्या आप तैयार है खुद को कसौटी पर परखने को।
- मिश्रा राहुल
(लेखक एवं ब्लोगिस्ट)
फोटो सौजन्य: विशाल बाबू (मेला छोटा सा बाबू)
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