बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

आजकल


आवाज़ बंद है फिर भी बोलता हूँ,
ताले बंद कर दरवाजे खोलता हूँ।

इसे पागल पन कह दो तो सही,
सीने से पत्थर लगाकर खेलता हूँ।

अपने बहुत देखे ज़िंदगी में हमने,
गैरों को पास बुलाकर झेलता हूँ।

वक़्त ही ऐसा आजकल यहाँ का,
शीशे से दिल लगाकर तोड़ता हूँ।

©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो में) (२४-अगस्त-२०१४)

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