बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

बुधवार, 20 अगस्त 2014

कुछ दलीलें दूँ



कुछ दलीलें दूँ या तुझे सुन लूँ,
सितारें अपने हिस्से के चुन लूँ।

उम्मीदें भी आँचल फैलाए खड़ी,
कुछ उधार किस्से लेके बुन लूँ।

पहर दर पहर गाती है ज़िंदगी,
सुर उसके ऐसे हटा के धुन लूँ।
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©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(२१-अगस्त-२०१४)(डायरी के पन्नो में)

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