नींद आए तो उसको सपना कह दूँ,
कोई चेहरा दो उसको अपना कह दूँ।
अंधेरों में आँखें कड़ी नज़र रखती,
साए बोले तो उसको अपना कह दूँ।
छुप जाता है चाँद अक्सर मुझे देख,
बादल हटे तो उसको अपना कह दूँ।
खोजने क्षितिज मैं घूम रहा दर-बदर,
अगर मिले तो उसको अपना कह दूँ।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(०८-अगस्त-२०१४)(डायरी के पन्नो से)
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (08.08.2014) को "बेटी है अनमोल " (चर्चा अंक-1699)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंयही तलाश तो जिन्दगी है...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...
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