बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 7 अगस्त 2014

अपना कह दूँ


नींद आए तो उसको सपना कह दूँ,
कोई चेहरा दो उसको अपना कह दूँ।

अंधेरों में आँखें कड़ी नज़र रखती,
साए बोले तो उसको अपना कह दूँ।


छुप जाता है चाँद अक्सर मुझे देख, 
बादल हटे तो उसको अपना कह दूँ।

खोजने क्षितिज मैं घूम रहा दर-बदर,
अगर मिले तो उसको अपना कह दूँ।

©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(०८-अगस्त-२०१४)(डायरी के पन्नो से)

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (08.08.2014) को "बेटी है अनमोल " (चर्चा अंक-1699)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  2. यही तलाश तो जिन्दगी है...

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