भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
गुरुवार, 7 अगस्त 2014
अपना कह दूँ
नींद आए तो उसको सपना कह दूँ,
कोई चेहरा दो उसको अपना कह दूँ।
अंधेरों में आँखें कड़ी नज़र रखती,
साए बोले तो उसको अपना कह दूँ।
छुप जाता है चाँद अक्सर मुझे देख,
बादल हटे तो उसको अपना कह दूँ।
खोजने क्षितिज मैं घूम रहा दर-बदर,
अगर मिले तो उसको अपना कह दूँ।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(०८-अगस्त-२०१४)(डायरी के पन्नो से)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
-
बरसात में भीगती शाम में अकेले तनुज अपनी दूकान में बैठा रास्ता निहार रहा था सुबह से एक भी कस्टमर दुकान के अन्दर दाखिल नहीं हुआ। तनुज से ब...
-
(सीन 1) अचानक एक कार रुकी.... बड़ी ज़ोर सी आवाज़ आई....रोहन.....बीप बीप बालकनी से रोहन ने झांक के देखा एक अजब सी रंगत थी उसके चेहरे ...
-
पथरीली रास्तों पर की कहानी और है.. सिसकती आँखों में नमकीन पानी और है..!! टूटा तारा गिरा है देख किसी देश में.. खोज जारी है पर उसकी मेहर...
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (08.08.2014) को "बेटी है अनमोल " (चर्चा अंक-1699)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंयही तलाश तो जिन्दगी है...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएं